Wednesday, September 27, 2017

डॉ एस के सरीन मेरे लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं .



शेष नारायण सिंह



२७ सितम्बर २०१६  के दिन मेरे  डाक्टर  ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया था . मेरे लिए डॉ सरीन फ़रिश्ता  हैं . २८ दिन से मेरा बुखार उतरा नहीं था. मैं ११ सितम्बर को वसंत कुञ्ज,नई दिल्ली के आई एल बी एस ( ILBS) अस्पताल में दाखिल हुआ था . जब मैं उस अस्पताल  में गया था तो मेरी हालत बहुत ही खराब  थी . बाकी तो सब ठीक हो गया लेकिन बुखार नहीं उतर रहा  था. कैंसर , टीबी, आदि भयानक बीमारियों के टेस्ट हो गए थे , सब कुछ  रूल आउट हो गया था लेकिन बुखार? डॉ एस के सरीन  इलाज में नई नई खोज के लिए दुनिया  भर में विख्यात हैं  .गैस्ट्रो इंटाइटिस का सबसे सही इलाज उनके नाम पर रजिस्टर्ड है.  दुनिया के कई  अस्पतालों में ' सरीन प्रोटोकल ' से ही इस बीमारी का इलाज किया जाता  है .   मेरे सैकड़ों टेस्ट हो चुके थे लेकिन बुखार का कारण पता नहीं लग रहा था. डॉ सरीन ने इम्पिरिकल आधार पर नई दवा तजवीजी और इलाज शुरू कर दिया  . तीन दिन के अन्दर बुखार खत्म . इसलिए २७  सितम्बर २०१६ को मैं अपने पुनर्जीवन की शुरुआत मानता हूँ . पांच अक्टूबर २०१६ के दिन जब मुझे अस्पताल से  छुट्टी मिली तो मेरे  डाक्टर ने कहा था कि " अब आप जाइए फिजियोथिरैपी होगी और आप चलना फिरना शुरू कर देंगें . बस एक बात का ध्यान रखना --- "अगर बुखार हो या उल्टी आये तो बिना किसी से  पूछे सीधे अस्पताल आ जाइएगा, मुझे या किसी और से संपर्क करने की कोशिश भी मत करना . सिस्टम अपना काम करेगा . मुझे  तुरंत पता लग जाएगा ."  ऐसी नौबत नहीं आयी , फ़रिश्ते का हाथ जो मेरे ऊपर था . आज एक साल बाद जब मेरे दोस्त कहते हैं कि अब आप पहले से भी ज्यादा स्वस्थ लग रहे हैं तो डॉ एस के सरीन एक सम्मान में सर झुक जाता  है.  डॉ सरीन मेडिकल एथिक्स बड़े साधक हैं .अपने देश में अगर इसी तरह के मेडिकल एथिक्स के बहुत सारे साधक हर अस्पताल में हों तो अपने देश की  स्वास्थ्य व्यवस्था में क्रान्ति आ सकती  है. सितम्बर २०१६ के बाद की अपनी ज़िंदगी को मैं डॉ सरीन की तपस्या का प्रसाद मानता हूँ और इसको सबके कल्याण के लिए समर्पित कर चुका हूँ . 

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